सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को चंडीगढ़ मेयर चुनाव परिणाम मामले की सुनवाई में ऐतिहासिक कदम उठाते हुए न सिर्फ कोर्ट के सामने वोटों की गिनती कराई बल्कि चुनाव नतीजों को भी पलट दिया और आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार कुलदीप कुमार को चंडीगढ़ का निर्वाचित मेयर घोषित कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने 30 जनवरी के चुनाव परिणामों की घोषणा में गंभीर खामियां पाए जाने के बाद चुनाव रिटर्निंग अधिकारी अनिल मसीह के खिलाफ उनके “कदाचार” के लिए मुकदमा चलाने का भी आदेश दिया है।
शीर्ष अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह पूरी चुनावी प्रक्रिया को रद्द नहीं कर रही है और खुद को गिनती प्रक्रिया में हुई गड़बड़ियों से निपटने तक सीमित नहीं कर रही है, जिसके कारण कुलदीप कुमार के पक्ष में डाले गए आठ वोट अमान्य हो गए।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि यह स्पष्ट है कि मसीह ने आठ मतपत्रों को नष्ट करने का जानबूझकर प्रयास किया।
रिटर्निंग अधिकारी द्वारा गठबंधन सहयोगियों के आठ वोटों को अवैध घोषित करने के बाद मतपत्रों के साथ छेड़छाड़ के आरोप लगने के बाद भाजपा ने आप-कांग्रेस गठबंधन के उम्मीदवार को हराकर मेयर पद जीता था।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के मनोज सोनकर ने अपने प्रतिद्वंद्वी के 12 वोटों के मुकाबले 16 वोट पाकर कुलदीप कुमार को हराकर मेयर पद हासिल किया। हालांकि, बाद में सोनकर ने इस्तीफा दे दिया, जबकि आप के तीन पार्षद बीजेपी में शामिल हो गए हैं।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा है कि चुनाव में पीठासीन अधिकारी अनिल मसीह द्वारा अंकित मतपत्र की जांच वह खुद करेगी। अदालत मामले की वीडियो फुटेज की भी जांच करेगी। कोर्ट ने कहा कि पीठासीन अधिकारी ने नियमों का पालन नहीं किया। उनके द्वारा अंकित किये गये चिन्हों को नजरअंदाज कर दिया जायेगा तथा मत गिने जायेंगे। इसके बाद यह साफ हो गया है कि मेयर चुनाव दोबारा नहीं होंगे।
दरअसल, यहां मेयर पद के लिए 30 जनवरी को चुनाव हुआ था, जिसमें बीजेपी के मनोज सोनकर विजयी घोषित किये गये थे। हालांकि, गठबंधन में चुनाव लड़ रहे दल कांग्रेस और आप ने चुनाव में अनियमितता का आरोप लगाया था। इसके साथ ही आम आदमी पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया। पहली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने ‘लोकतंत्र की हत्या’ जैसी बेहद गंभीर टिप्पणी की थी।
टाइमलाइन
चंडीगढ़ मेयर चुनाव में क्या हुआ? चुनाव में गड़बड़ी के आरोप क्यों लगे? कोर्ट तक कैसे पहुंचा मामला?
18 जनवरी:
चंडीगढ़ में हर साल मेयर, सीनियर डिप्टी मेयर और डिप्टी मेयर पद के लिए चुनाव होते हैं। इनका कार्यकाल मात्र एक वर्ष का होता है। तीनों पदों के लिए 18 जनवरी को चुनाव होना था। चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा की ओर से मनोज सोनकर मेयर प्रत्याशी बने। वहीं, बीजेपी ने सीनियर डिप्टी मेयर पद के लिए कुलजीत संधू और डिप्टी मेयर पद के लिए राजिंदर शर्मा को अपना उम्मीदवार बनाया।
इन चुनावों से पहले विपक्षी इंडिया अलायंस पार्टियों कांग्रेस और आप ने गठबंधन बनाया था। इस समझौते के मुताबिक, मेयर पद के लिए कुलदीप कुमार टीटा आप के उम्मीदवार बन गये। इस बीच, कांग्रेस के गुरप्रीत सिंह गैबी और निर्मला देवी को क्रमश: सीनियर डिप्टी मेयर और डिप्टी मेयर पद के लिए मैदान में उतारा गया।
18 जनवरी को चंडीगढ़ नगर निगम के पार्षदों को मेयर पद के उम्मीदवारों के लिए वोट करना था। इसके बाद सीनियर डिप्टी मेयर और डिप्टी मेयर पद के लिए वोटिंग होनी थी, लेकिन पीठासीन अधिकारी अनिल मसीह की तबीयत खराब होने की खबर आ गई। इसके चलते चुनाव अगली सूचना तक स्थगित कर दिया गया। इससे पहले तीनों पदों के लिए संबंधित उम्मीदवारों ने 13 जनवरी को नामांकन दाखिल किया था।
30 जनवरी:
18 जनवरी को स्थगित होने के बाद 30 जनवरी को चुनाव हुए। इस दिन हुए चुनाव के बाद बीजेपी प्रत्याशी मनोज सोनकर को मेयर घोषित किया गया। आप और कांग्रेस के साझा उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ा। मनोज सोनकर ने इंडिया अलायंस के प्रत्याशी कुलदीप टीटा को 4 वोटों से हराया। पीठासीन अधिकारी ने आठ मतों को अवैध घोषित कर दिया। इस पर आप और कांग्रेस ने पीठासीन अधिकारी अनिल मसीह पर कई वोटों से छेड़छाड़ का आरोप लगाया। कांग्रेस और आप ने एक वीडियो शेयर कर आरोप लगाया कि वीडियो में अनिल मसीह कई वोटों पर पेन का इस्तेमाल करते दिख रहे हैं। दावा किया गया कि वीडियो में इसके सबूत भी हैं।
5 फरवरी:
वीडियो के आधार पर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने बीजेपी पर चुनाव में धांधली का आरोप लगाया। आम आदमी पार्टी के पार्षद और मेयर प्रत्याशी कुलदीप कुमार पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट पहुंचे लेकिन यहां उन्हें कोई राहत नहीं मिली। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया। 5 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने चंडीगढ़ मेयर चुनाव मामले पर सुनवाई की। इस दौरान कोर्ट ने रिटर्निंग ऑफिसर को जमकर फटकार लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह स्पष्ट है कि रिटर्निंग ऑफिसर ने मतपत्रों को नष्ट कर दिया है। कोर्ट ने सवाल पूछा कि क्या चुनाव भी इसी तरह आयोजित किये जाते हैं? यह लोकतंत्र का मजाक है। यह लोकतंत्र की हत्या है। हम पूरे मामले से हैरान हैं।’ इस अधिकारी पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए। क्या रिटर्निंग ऑफिसर का यही व्यवहार है? इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 19 फरवरी तय की है।
18 फरवरी:
चंडीगढ़ मेयर चुनाव पर 19 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी थी। इससे पहले चंडीगढ़ की राजनीति में बड़ा उलटफेर हुआ। 18 फरवरी की शाम नवनिर्वाचित मेयर मनोज सोनकर ने बीजेपी से इस्तीफा दे दिया। वहीं, रात में आम आदमी पार्टी के तीन पार्षद बीजेपी में शामिल हो गए। दिल्ली में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े की मौजूदगी में पार्षद पूनम देवी, नेहा मुसावत और गुरुचरण काला पार्टी में शामिल हुए।
चंडीगढ़ नगर निगम में 35 सदस्य हैं। इन चुनावों में चंडीगढ़ के सभी 35 पार्षदों के साथ-साथ चंडीगढ़ की सांसद किरण खेर भी वोट करती हैं। 18 फरवरी से पहले आप और कांग्रेस के गठबंधन के चलते नगर निगम की सियासी एकजुटता बीजेपी के खिलाफ थी। इसमें एक सांसद के साथ 14 पार्षदों का वोट था। जबकि आप के पास 13 पार्षदों के वोट थे। इसके बाद कांग्रेस के सात और अकाली दल का एक पार्षद है।
अब आप के तीन पार्षदों के बीजेपी में शामिल होने से स्थिति बदल गई है। अब बीजेपी के पास 14 की जगह 17 पार्षद हैं और बीजेपी सांसद का एक वोट पार्टी के खाते में जाएगा। ऐसे में अगर दोबारा चुनाव हुए तो समीकरण बीजेपी के पक्ष में होंगे।
19 फरवरी:
मेयर चुनाव विवाद में सोमवार (19 फरवरी) को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। पीठासीन पदाधिकारी पर चुनाव में गड़बड़ी का आरोप लगाया गया है। पंजाब के महाधिवक्ता गुरमिंदर सिंह ने कहा कि अदालत ने पीठासीन अधिकारी का बयान दर्ज किया है। इसके अलावा कोर्ट ने कहा है कि पूरा रिकॉर्ड सुरक्षित रखा जाए। जिसे मंगलवार दोपहर 2 बजे सुप्रीम कोर्ट के सामने रखा जाएगा। दूसरे पक्ष ने सुझाव दिया कि चूंकि मेयर ने इस्तीफा दे दिया है, इसलिए नये सिरे से चुनाव कराया जाना चाहिए। कोर्ट ने इस पर विचार किया और यह भी कहा कि जिस चरण में अवैधता हुई है, वहां से चुनाव दोबारा शुरू किया जा सकता है।