अदालत ने कहा कि दंपती को शादी के बंधन में बंधे रहने के लिए कहना ‘क्रूरता को मंज़ूरी देना है।जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने दिल्ली के इस जोड़े के विवाह को खत्म करते हुए कहा, हमारे सामने एक ऐसा शादीशुदा जोड़ा है जो मुश्किल से चार साल तक एक जोड़े के रूप में साथ रहा और पिछले 25 सालों से अलग रह रहे है, उनका कोई बच्चा भी नहीं है। इनका वैवाहिक बंधन पूरी तरह से टूटा हुआ है और इस टूटे हुए रिश्ते को फिर से जोड़ने की कोशिशें बेकार हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह रिश्ता खत्म होना चाहिए क्योंकि इसकी निरंतरता को कायम रखना ‘क्रूरता’ को मंज़ूरी देना होगा। कोर्ट के इन्हीं शब्दों के साथ वैधानिकता के कच्चे रेश्मी डोरे से बंधा रिश्ता टूट गया। सुप्रीम कोर्ट ने शादी भंग करने के आदेश के साथ दोनों को विवाह के बंधन से मुक्त कर दिया।