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सुप्रीम कोर्ट ने पलटा पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट का फैसला, BSF के कमाण्डेंट को दिए गए दण्ड को भी कर दिया कम

Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के एक फैसले को पलट दिया, जिसमें बीएसएफ अधिनियम और एनडीपीएस अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत एक पूर्व बीएसएफ कमांडर की दोषसिद्धि को बरकरार रखा गया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए कहा है कि आरोपी के खिलाफ प्रत्यक्ष और मजबूत साक्ष्यों की कमी है।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ ने इस बारे में टिप्पणी की कि-
“अपीलकर्ता के खिलाफ प्रत्यक्ष और ठोस साक्ष्य के अभाव में, दी गई सजा बहुत कठोर थी, इस बात पर ध्यान देना जरूरी है कि अपीलकर्ता ने पहली बार अपराध किया है और वो आदतन अपराधी नहीं है। बेंच ने तर्क दिया, कि अपीलकर्ता पर लगे आरोपो में सच्चाई की कुछ झलक जरूर है लेकिन हमारे विचार से जो सजा दी गई है वो बहुत ज्यादा है।
अपीलकर्ता बीएस हरि, 1956 बटालियन (बीएसएफ) के कमांडेंट थे, जिसका मुख्यालय ममदोट, पंजाब में था। 5 अप्रैल, 1995 को, स्थानीय पुलिस ने एक खोज की और एसिटिक एनहाइड्रिड के कुछ जेरीकैन बरामद किए जो नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सबस्टेंस एक्ट, 1985 (“एनडीपीएस एक्ट”) की धारा 9ए के तहत एक निषिध पदार्थ से भरे थे। संभवतः ये – पाकिस्तान से भारत में स्मगल कर भेजे गए थे।
स्थानीय पुलिस ने पंजाब के फ़िरोज़पुर थाने में प्राथमिकी दर्ज की, जिसमें लखविंदर सिंह और सुरजीत सिंह उर्फ पहलवान नाम के दो लोगों को तस्कर बताते हुए अभियुक्त बनाया गया।
7 अप्रैल, 1995 को अपीलकर्ता को भी गिरफ्तार कर लिया गया। हालांकि, अपीलकर्ता के घर की तलाशी के दौरान कोई आपत्तिजनक सामग्री नहीं मिली।
9 अप्रैल, 1995 को, एक जांच आयोजित की गई, जिसमें पता चला कि एक इंस्पेक्टर दीदार सिंह, जो उस क्षेत्र के वास्तविक और भौतिक कमांड और नियंत्रण में थे, जहां कथित जेरीकैन्स बरामद की गई थी, ने गवाही दी कि बीएस हरि के कहने पर वो इस घटना में शामिल हुआ था।
4 जुलाई, 1995 को, अपीलकर्ता पर सीमा सुरक्षा बल अधिनियम, 1968 (बीएसएफ अधिनियम) की धारा 40 और धारा 46 (नागरिक अपराध) के तहत आरोप लगाया गया था, जिसे बाद में हटा दिया गया था।
20 अक्टूबर, 1995 को एक नया आरोप पत्र दायर किया गया, जिसमें एनडीपीएस अधिनियम की धारा 25 के उल्लंघन में किए गए नागरिक अपराध के लिए बीएसएफ अधिनियम की धारा 46 के तहत दो आरोप शामिल थे एक आरोप बीएसएफ अधिनियम की धारा 40 के तहत एक शामिल किया गया।
इस बीच, अपीलकर्ता 31 अगस्त, 1995 को 31 साल, 6 महीने 22 दिनों की सेवा के बाद सेवानिवृत्त हो गया।
10 अप्रैल, 1996 को जनरल सिक्योरिटी फोर्स कोर्ट (GSFC) ने अपीलकर्ता को दोषी ठहराया और उसे दस साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई, और एक लाख रुपये का जुर्माना लगाकर बर्खास्त कर दिया।
2 नवंबर, 1996 को अपीलकर्ता ने संबंधित प्राधिकारी के पास एक वैधानिक याचिका दायर की, जिसे अस्वीकार कर दिया गया।
अपीलकर्ता ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के समक्ष एक आपराधिक रिट याचिका दायर की जिसमें उनके मुकदमे और विवादित आदेश को रद्द करने की मांग की गई, साथ ही साथ बाद के सभी आदेशों को रद्द करने और उनकी पेंशन और अन्य लाभों को जारी करने के निर्देश दिए गए।
इस बीच, साक्ष्य के अभाव में, निचली अदालत ने अन्य सह-आरोपी लखविंदर सिंह को आरोप मुक्त कर दिया।
उच्च न्यायालय ने रिट याचिका को खारिज कर दिया, जिसे उच्चतम न्यायालय में अपील की गई थी।

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About the Author: Ashish Sinha

-Ashish Kumar Sinha -Editor Legally Speaking -Ram Nath Goenka awardee - 14 Years of Experience in Media - Covering Courts Since 2008

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