सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा है कि सिनेमा हॉल जिम नहीं है जहां आपको पौष्टिक भोजन चाहिए वह मनोरंजन की जगह है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये दर्शकों का अधिकार और इच्छा है कि वो किस थिएटर में कौन सी फिल्म देखने जाएं वैसे ही हॉल प्रबंधन को भी अधिकार है कि वहां क्या क्या नियम बनाने हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इन टिप्पणियों के साथ जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट के उस आदेश को पलट दिया है जिसमें हाईकोर्ट ने दर्शकों को सिनेमा हॉल में बाहरी खाना ले जाने की इजाजत दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला हाई जम्मू-कश्मीर सिनेमा हॉल ऑनर्स एसोसिएशन याचिका पर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट आदेश को अनुचित बताते हुए कहा कि ये हाईकोर्ट ने अपने अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन किया है।
सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि कोई सिनेमा घर में जलेबी लेकर जाना चाहे तो सिनेमा हॉल प्रबंधन उसे ये कहते हुए मना कर सकता है कि अगर जलेबी खाकर दर्शक ने सीट से अपने चाशनी वाली अंगुलियां पोंछ ली तो खराब हुई सीट की सफाई का खर्च कौन देगा? सिनेमा हॉल प्रबंधन को तो यह भी शिकायत है कि लोग मुर्ग मुसल्लम लेकर आते हैं। बाद में उनकी हड्डियां वहीं छोड़ जाते हैं। उससे भी कुछ लोगों को परेशानी होती है।
चीफ जस्टिस ने कहा कि जब टीवी पर 11 बजे के बाद कुछ ‘खास’ वर्ग की फिल्मों के प्रसारण का नियम बनाया गया तो उसका मकसद ये था की बच्चों के सोने के बाद वयस्क लोग वो फिल्में देख सकें। लेकिन इस पर भी कई लोगों को आपत्ति थी। उनका कहना था कि उस देर रात में वयस्क तो खाना पीना खा पी कर सो जाते हैं। बच्चे ही जागे रहते हैं। लिहाजा उस वक्त वयस्कों वाली फिल्में न दिखाई जाएं।
दरअसल दो वकीलों ने जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट के 18 जुलाई 2018 को दिए फैसले को यहां सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेशों में कहा है कि छोटे बच्चों के लिए पीने का स्वच्छ पानी मुफ्त उपलब्ध कराने के आदेश पहले से ही दे रखे हैं।