सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि अगर किसी व्यक्ति ने ग्रामीण स्वास्थय देखभाल में डिप्लोमाधारी डॉक्टर्स भी कुछ सामान्य बीमारियों का इलाज करने और कुछ दवाओं को लिखने के लिए अधिकृत है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने गुवाहाटी हाईकोर्ट के उस फैसले को कर दिया जिसमें कहा गया था कि डिप्लोमा धारी चिकित्सकों की प्रैक्टिस से न केवल ग्रामीणों के जीवन पर खतरा हो सकता है बल्कि आईएमए के प्राविधानों का उल्लंघन होता है। सन 2015 में राज्य सरकार ने ग्रामीणों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं देने के लिए एक अधिनियम बनाया था। लेकिन इस अधिनियम में कुछ खामियां थीं। इन खामियों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अधिनियम अमान्य करने के गुवाहाटी हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहाराया है वहीं जिन युवाओं ने चिकित्सा शिक्षा में डिप्लोमा स्तर की ट्रैनिंग हासिल कर रखी है उन्हें सामान्य बीमारियों का इलाज करने की छूट दे दी है।
जस्टिस बीआर गवई और बीवी नागरत्ना की बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि चिकित्सा शिक्षा के लिए न्यूनतम मानकों का निर्धारण, किसी संस्था को मान्यता देने या मान्यता रद्द करने के प्राधिकार राज्य विधानमंडल के पास न हो कर संसद के पास है।
इस पहले गौहाटी उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता की याचिका को इस आधार पर अधिनियम को रद्द कर दिया गया था कि यह भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1956 के विरुद्ध है। भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम की धारा 10ए के संचालन के कारण, उच्च न्यायालय ने कहा था कि उक्त डिप्लोमा पाठ्यक्रम शुरू करने से पहले राज्य सरकार को केंद्र से मंजूरी लेनी चाहिए थी। केंद्र सरकार से अनुमति की कमी के साथ-साथ राष्ट्रपति की सहमति की कमी के साथ, उक्त अधिनियम को असंवैधानिक तौर पर अलग रखा गया था।