केरल हाईकोर्ट ने समाज में यौन उत्पीड़न के बढ़ते मामलो पर चिंता जाहिर करते हुए कहा किसी भी लड़की या औरत के ना का मतलब ना ही होता है।
केरल हाईकोर्ट ने समाज में यौन उत्पीड़न के मामलों में वृद्धि का जिक्र करते हुए यह भी कहा की हर लड़को को स्कूल और परिवारों में यह सीख दी जानी चाहिए कि उन्हें किसी लड़की या महिला को उसकी मर्जी के बिना ना छुए।
इस मामले में न्यायालय ने रजिस्ट्री को 3 फरवरी को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया।
अदालत ने समाज में यौन उत्पीड़न के मामलों में वृद्धि का जिक्र करते हुए कहा कि अच्छे व्यवहार और शिष्टाचार संबंधी पाठ कम से कम प्राथमिक स्तर से पाठ्यक्रम का हिस्सा होना चाहिए।
उच्च न्यायालय ने कहा कि लड़कों को यह समझना चाहिए कि नहीं का मतलब नहीं होता है, और साथ ही समाज से आग्रह किया कि वह लड़कों को स्वार्थी और आत्मकेंद्रित होने के बजाय उन्हें नि:स्वार्थ और सज्जन बनना सिखाएं ।
इस मामले में जस्टिस देवन रामचंद्रन ने कहा कि पुरुषो की पुरानी सोच बदल गई है लेकिन इस सोच को और बदलने की जरूरत है।
जस्टिस रामचंद्रन ने साथ ही कहा की लड़कों को पता होना चाहिए कि उन्हें किसी लड़की/महिला को उसकी स्पष्ट सहमति के बिना नहीं छूना चाहिए, और लड़को को समझना चाहिए कि लड़कियों या किसी भी औरत के ना का मतलब ना ही होता है।
जस्टिस रामचंद्रन ने ये भी कहा कि लड़को को ये भी सिखाया जाना चाहिए कि असली पुरुष महिलाओं को धमकाते नहीं हैं और मर्दाना गुण का दिखावा नहीं करते हैं, बल्कि इसका विरोध करते हैं। और जो पुरुष महिलाओं पर हावी होते हैं और उन्हें परेशान करते हैं वो वास्तव में एक कमजोर पुरुष हैं।
दरअसल केरल हाई कोर्ट में एक याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस रामचंद्रन ने ये टिप्पणी की थी, जिसमे अदालत कोल्लम के टीकेएम कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करने और उन्हें गलत तरीके से छूने के आरोपी आरोन एस. जॉन द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी और इसके बाद कॉलेज की आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) ने आरोपी जॉन के खिलाफ जांच शुरू की, जिसने उन्हें दोषी पाया।
जिस पर आरोपी आरोन एस. जॉन ने से दोषी ठहराने वाली शिकायत समिति की रिपोर्ट को चुनौती देते हुए कहा कि याचिकाकर्ता आरोन एस. जॉन को सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया।