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लिंचिंग से बचा सकती थी पुलिस! गुजरात हाईकोर्ट ने मंजूर नहीं की जिम्मेदार अफसरों की क्षमा याचना

Gujarat High Court

गुजरात हाईकोर्ट ने कहा है कि अगर घटना स्थल पर पुलिस मौजूद है तो आरोपी के मानवाधिकारों की रक्षा करना भी पुलिस का दायित्व है। पुलिस का दायित्व यह नहीं है कि भीड़ आरोपियों को पीटती रहे और वो खड़ी देखती रहे। दरअसल, अक्टूबर 2022 में गुजरात के खेड़ा जिले में पांच मुस्लिम युवकों की उग्र भीड़ ने पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। इन मुस्लिम युवकों पर आरोप उंधेला गाँव की नवरात्री समारोह में शामिल भीड़ पर पत्थरबाज़ी करने का था।

न्यायमूर्ति एनवी अंजारिया और न्यायमूर्ति निरल मेहता ने पुलिस की क्षमा याचना और राज्य के एफिडेविट पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा की “हम इस मामले में ये नहीं चाहते की आप अदालत की गरिमा का मान रखें, हम ये चाहते हैं की आप जीवन की गरिमा जो की आर्टिकल 21 में निहित है उसका मान रखें।” पीठ ने ये भी कहा की “हम पुलिस की ओर से प्रस्तुत साक्ष्यों और दलीलों को स्वीकृत नहीं कर सकते।” क्षमा याचिकाओं को भी मंज़ूरी नहीं दे सकते।

न्यायमूर्ति अंजारिया ने ऑफिसर्स के वकील से ये सवाल किया “हम आपकी क्षमा याचना को क्यों मंज़ूर करें? पांच युवकों का जीवन नहीं बचा पाने के लिए? हम चाहते हैं के आप डीके बासु के निर्णय का सम्मान करें।”

मामले की अगली सुनवाई 29 मार्च को होनी है। पीठ ने राज्य सरकार की तरफ से दाखिल किये गए एफिडेविट पर भी आपत्ति जताई और कहा की “हमने पहले भी साफ़ किया है की हम इस मामले को कस्टोडियल डेथ के मामले की तरह देखेंगे लेकिन राज्य सरकार के एफिडेविट में सिर्फ घटनाक्रम, मजस्ट्रियल कस्टडी की बात कही गयी है। इसमें मार-पीट वाली घटना का कोई जिक्र नहीं है। हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार फिर से नया एफिडेविट दाखिल करे।”

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