इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने सरकारी वकीलों की तैनाती में धांधली के आरोप वाली याचिका को मंजूर कर लिया है। साथ ही निर्देश दिया है कि इस याचिका को वर्ष 2017 में दायर जनहित याचिका से साथ संबंद्ध किया जाए। सरकारी वकीलों की तैनाती में होने वाली धांधली के संबंध में दायर सभी याचिकाओं पर 28 मार्च को सुनवाई होगी।
कार्यवाहक मुख्य न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति राजन रॉय की खंडपीठ ने यह आदेश महेंद्र सिंह पवार की 2017 में दायर जनहित याचिका पर दिया। इसमें, इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में तैनात किए गए सरकारी वकीलों की नियुक्ति में गड़बड़ी के आरोप लगाकर कानून के तहत नियुक्ति किए जाने का आग्रह किया गया था।
इसके बाद पिछ्ले साल तीन स्थानीय वकीलों ने फिर एक याचिका दायर कर लखनऊ पीठ में तैनात किए गए स्थायी अधिवक्ता, ब्रीफ होल्डर्स की नियुक्ति सम्बंधी गत एक अगस्त के राज्य सरकार के आदेश को चुनौती दी है।
ध्यान रहे, हाई कोर्ट ने बदलते वक्त के साथ राज्य सरकार की तरफ से सरकारी वकीलों की तैनाती प्रक्रिया में आवश्यक बदलाव की जरुरत बताई थी। कोर्ट ने राज्य सरकार को अपनी पसंद के सरकारी वकील आबद्ध करने के हक से इनकार किए बगैर कहा था कि इनकी तैनाती को भिन्न पायदान पर देखना होगा। क्योंकि इनको सरकारी कोष से भुगतान किया जाता है,जो राज्य के लोगों का धन है। ऐसे में सरकारी वकीलों की तैनाती की प्रक्रिया भरोसेमंद व किसी भी मनमानेपन से मुक्त होनी चाहिए।