भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने हाल ही में मध्य प्रदेश बार काउंसिल के अध्यक्ष प्रेम सिंह भदौरिया और अन्य सदस्यों से मुलाकात की और कहा कि उन मुद्दों को तलाश किया जाए जिन्होंने वकीलों को हड़ताल के लिए बाध्य किया।
स्टेट बार काउंसिल के प्रतिनिधिमंडल ने शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एसके कौल और जस्टिस जेके माहेश्वरी से मुलाकात की।
प्रतिनिधिमंडल के विचारों को सुनने के बाद, दोनों न्यायाधीश भारत के मुख्य न्यायाधीश से मिलने गए।
बाद में, CJI और पांच अन्य न्यायाधीशों ने मामले पर चर्चा के लिए प्रतिनिधिमंडल के साथ मुलाकात की।
बैठक में, CJI चंद्रचूड़ ने वकीलों को सुनिश्चित किया कि उनकी चिंताओं को दूर किया जाएगा।
दरअसल, मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने हर तीन माह में उन 25 मामलों को निस्तारित करने के निर्देश दिए हैं जो काफी समय से लंबित हैं। इसीको लेकर मध्यप्रदेश के वकील हड़ताल पर है।
यह मामला मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में भी उठ चुका है। पीठ ने मामले की सुनवाई के बाद कहा था कि
“हमारा विचार है कि एक वकील का कर्तव्य कानून के शासन को बनाए रखना है। वकील वो संस्था है, जो एक वादी के कानूनी अधिकारों के लिए लड़ता है। जिला अदालत की न्यायपालिका में लगभग 20 लाख मामले लंबित हैं और इससे अधिक उच्च न्यायालय में 4 लाख मामले लंबित हैं। माननीय उच्च न्यायालय द्वारा लंबित मामलों को कम करने के लिए हर संभव प्रयास किया जा रहा है। प्रतिवादी नंबर 1 की अदालत के काम से दूर रहने की कार्रवाई कानूनी सिद्धांतों के सुस्थापित सिद्धांतों के विपरीत है।
राज्य बार काउंसिल के अध्यक्ष और प्रत्येक निर्वाचित सदस्य को 27 मार्च को अदालत से कारण बताओ नोटिस प्राप्त हुआ, जिसमें उन्हें यह बताने के लिए कहा गया था कि वकीलों को न्यायिक कार्य से अनुपस्थित रहने का आदेश देने के लिए उन्हें अदालत की आपराधिक अवमानना में क्यों नहीं ठहराया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन की एकल पीठ ने कहा कि सभापति द्वारा बुलाई गई हड़ताल, 24 मार्च के उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश की खुली अवहेलना थी।
यहीं से मामला तूल पकड़ता गया और अब सीजेआई तक पहुंचा है।