कलकत्ता उच्च न्यायालय ने सोमवार को पश्चिम बंगाल के नेता प्रतिपक्ष और भाजपा विधायक शुभेंदु अधिकारी की जनहित याचिका (पीआईएल) पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया, जिसमें राज्य में रामनवमी के जुलूस के दौरान हुई हिंसा की घटनाओं की एनआईए/सीबीआई जांच की मांग की गई थी। सभी पक्षों के वकीलों की दलीलें सुनने के बाद, कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश टी.एस. शिवगणनम और न्यायमूर्ति हिरण्मय भट्टाचार्य की पीठ ने अपना आदेश सुरक्षित रख लिया।
महाधिवक्ता सौमेंद्र नाथ मुखर्जी ने हिंसा की जांच के लिए एनआईए के अनुरोध का विरोध किया। उन्होंने कहा राज्य पुलिस पहले से ही मामले की जांच कर रही है और केंद्र की सहमति के बाद ही एनआईए जांच का आदेश दे सकते है।
इस पर, कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश शिवगणनाम ने कहा कि स्थिति गंभीर प्रतीत होती है क्योंकि रिपोर्टों से प्रथम दृष्टया संकेत मिलता है कि हिंसा पूर्व नियोजित थी ऐसे में एक केंद्रीय जांच एजेंसी मामले की जांच करने के लिए बेहतर स्थिति में होगी।
दूसरी ओर, केंद्र के लिए एएसजी ने कहा कि यदि विस्फोट होते हैं और विस्फोटक का उपयोग किया जाता है, तो एनआईए एक्ट के दायरे में आता है और एनआईए जांच का आदेश देना केंद्र का विवेकाधिकार बन जाता है।
अदालत ने कहा कि पुलिस को पेलेट गन और आंसू गैस के गोलों का उपयोग करके भीड़ को तितर-बितर करना पड़ा, जो गंभीर स्थिति का संकेत है। अदालत ने यह भी कहा कि “रिपोर्ट प्रथम दृष्टया बताती हैं कि वे (हिंसक घटनाएं) सभी पूर्व नियोजित थीं। एक आरोप है कि छतों से पत्थर फेंके गए थे, निश्चित रूप से 10-15 मिनट में छत पर पत्थर नहीं पहुंचाए जा सकते थे।
इसके अलावा, जब अदालत ने एजी से पूछा कि राज्य की रिपोर्ट में बम फेंके जाने का उल्लेख क्यों नहीं है, जबकि घटना मीडिया में व्यापक रूप से कवर की गई थी, तो एजी ने इनकार किया कि कोई बम नही फेंका गया था। उन्होंने कहा कि रिट याचिकाओं में बमबारी और घरों को जलाने के आरोप झूठे थे। एक अन्य वकील ने तर्क दिया कि राज्य पुलिस ने निर्धारित उल्लंघनों से बचने के लिए विस्फोटक पदार्थ अधिनियम का उपयोग नहीं किया। कोर्ट ने सभी पक्षों के वकीलों को सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
बीजेपी विधायक शुभेंदु अधिकारी ने हाई कोर्ट में याचीका दाखिला कर मामले की सीबीआई/एनआईए से जांच कराने की मांग की है।