बॉम्बे हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को अनाथ और परित्यक्त बच्चों को 1 प्रतिशत आरक्षण नहीं दे पाने की वजह से जमकर फटकार लगायी है। न्यायमूर्ति गौतम पटेल और नीला गोखले की डिवीज़न बेंच ने सरकार से पूछा “सरकार नींद से कब जागेगी?” अदालत नेस्ट फाउंडेशन ट्रस्ट की ओर से उन दो बच्चियों को आरक्षण दिए जाने की याचिका पर सुनवाई कर रही रही जिन्हें चार-पांच वर्ष की उम्र में ही उनके परिवार ने त्याग दिया था।
नेस्ट फाउंडेशन ट्रस्ट ने इन बच्चियों की पढ़ाई लिखाई और बेहतर भविष्य के लिए एक प्रतिशत हॉरिजॉन्टल रिज़र्व केटेगरी का लाभ दिलाने के लिए कोर्ट में याचिका डाली है। महाराष्ट्र सरकार के वीमेन एंड चाइल्ड डेवलपमेंट डिपार्टमेंट की ओर से कोर्ट में पेश हुए ज्वाइंट सेक्रेटरी शरद अहिरे ने अदालत में ये दलील दी की “जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रन)एक्ट 2015 के अनुसार परित्यक्त और अनाथ बच्चे ऐसे माइनर्स हैं जिन्हे संरक्षण और सुरक्षा की जरुरत है। हो सकता है कि आरक्षण का लाभ लेने के लिए माता पिता ने अपने बच्चों का त्याग कर दिया हो। ऐसे में आरक्षण का लाभ सबको नहीं दिया जा सकता।”
इसपर अदालत ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा “क्या सरकार यह समझ पा रही है की अपने ही बच्चों का त्याग करने वाले माता पिता की मानसिक स्थिति क्या होगी? माता व पिता दोनों के लिए ही अपनी संतान त्यागना कष्टदायी है। हर बच्चे को अभिभावक के देखभाल की आवश्यकता होती है। अगर माँ-बाप न हो तो या तो वो बच्चा अनाथ है या परित्यक्त। परवरिश करने के लिए किसी का न होना ही यह समझने के लिए बहुत है की सरकार का दायित्व ऐसे मामलो में क्या होना चाहिए। “
कोर्ट ने आगे कहा “सरकार हर मामले में अलग रुख अपनाती है। ह सरकार को ये समझना होगा कि हर बार वो सही नहीं हो सकती।” मामले की अगली सुनवाई 31 मार्च 2023 को होगी।