बॉम्बे हाई कोर्ट ने गुरूवार को अपने फैसले में कहा की सिर्फ एक बार किया गया जुर्म अगर वो हत्या है तो दोषी की सजा को कम नहीं किया जा सकता। इतना ही नहीं अगर यह कत्ल ‘पानी’ या खेत की सिंचाई के मुद्दे पर है तो और भी गंभीर है। इसी को आधार मानकर कोर्ट ने पानी के लिए कत्ल के दोषी को दी गई मौत की सजा को बरकरार रखा।
दरअसल, वर्ष 2012 में हुई घटना के अभियुक्त 25 वर्षीय मुरलीधर बॉमब्ले को अदालत ने, आईपीसी की धारा 302 हत्या का दोषी माना है। दोषी ने अपने पड़ोसी की धारदार हथियार से हत्या कर दी थी। उसके भाई और पिता ने भी पीड़ित के परिवारजनों पर धारदार हथियार से हमला किया था। पीड़ित का दोष सिर्फ इतना था के उसने अभियुक्त के परकोलेशन टैंक से अपने खेत की सिंचाई के लिए पानी ले लिया था।
अदालत ने अपने फैसले में कहा “जिस तरह का हथियार शरीर के संवेदनशील स्थान पर इस्तेमाल किया गया,भले ही सिर्फ एक बार वार किया गया था मगर वो जानलेवा था।”
पीड़ित और अभियुक्त के दोनों के परिवारजन पेशे से किसान हैं। एक शाम दत्तू (मृतक) और उसकी पत्नी पानी लेने बाहर गए और बहुत देर तक नहीं लौटे। उन्होंने देखा कि उनके माता-पिता लहुलहान पड़े हैं। इस पर जब उन्होंने प्रतिवाद किया तो अभियुक्त गणों ने उनपर भी धारदार हँसिये और लाठी डंडे से वार किया।
अभियुक्त ने अदालत में ये दलील दी की गवाह का बयान विरोधाभासी था और उससे ये साबित नहीं होता की घटना के समय अभियुक्त के पास हथियार मौजूद थे, और मृतक की मृत्यु सिर्फ एक वार से हो गयी इसका अर्थ ये है के हमला जानलेवा नहीं था।
कोर्ट ने बचाव पक्ष की दलीलों को यह कहकर ख़ारिज कर दिया की धारदार हथियार से सिर्फ एक बार वार किया जाना धारा 302 के प्रभाव को कम नहीं करता। और अभियुक्त की सजा को धारा 304(ii )के अंतर्गत परिवर्तित या कम नहीं किया जा सकता। तमाम सबूत और गवाह ये स्पष्ट करते हैं की दत्तू की मृत्यु मुरलीधर के हथियार से पेट पर हुए हमले से हुई। वार कितनी बार किया गया इससे फर्क नहीं पड़ता।