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ज्ञानवापीः इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला, व्यासजी के तहखाने में पूजा जारी रहेगी, मुस्लिम पक्ष को झटका

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इलाहाबाद उच्च न्यायालय सोमवार को (आज) ज्ञानवापी परिसर को लेकर अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी (एआईएमसी) की अपील पर अपना फैसला सुनाते हुंए कहा है कि व्यास जी के तहखाने में हिंदुओं की पूजा जारी रहेगी। इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले से मुस्लिम पक्ष को तगडा झटका लगा है। हाईकोर्ट के इस फैसले से जहां हिंदु पक्ष में खुशी का माहौल और होली मनानी शुरु कर दी है वहीं, मुस्लिम पक्ष ने कहा है कि वो सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को चुनौती देंगे।

इससे पहले मस्जिद इंतजामिया कमटे वाराणसी जिला न्यायाधीश के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें हिंदू भक्तों को ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में ‘व्यास का तहखाना’ क्षेत्र के अंदर प्रार्थना करने की अनुमति दी गई थी।

इस संबंध में इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल फैसला सुना दिया है।

इससे पहले दोनों पक्षों के बीच चली लंबी बहस के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था.

मस्जिद के तहखाने में चार ‘तहखाने’ (तहखाने) हैं, जिनमें से एक अभी भी व्यास परिवार के कब्जे में है, जो वहां रहते थे।

इससे पहले, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि वाराणसी अदालत द्वारा हिंदू भक्तों को ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के अंदर ‘व्यास का तेखाना’ क्षेत्र में प्रार्थना करने की अनुमति देने का फैसला स्थानों का उल्लंघन था।

“जिस जज ने फैसला सुनाया, वह रिटायरमेंट से पहले उनका आखिरी दिन था। जज ने 17 जनवरी को जिला मजिस्ट्रेट को रिसीवर नियुक्त किया और आखिरकार उन्होंने सीधे फैसला सुना दिया। उन्होंने खुद कहा था कि 1993 के बाद से कोई प्रार्थना नहीं की गई। 30 साल हो गए हैं।” उन्होंने कहा, ”उन्हें कैसे पता चला कि अंदर मूर्ति है? यह पूजा स्थल अधिनियम का उल्लंघन है।”

“उन्होंने 7 दिनों के भीतर ग्रिल खोलने का आदेश दिया है। अपील करने के लिए 30 दिन का समय दिया जाना चाहिए था। यह गलत निर्णय है। जब तक मोदी सरकार यह नहीं कहती कि वे पूजा स्थल अधिनियम के साथ खड़े हैं, यह जारी रहेगा।” बाबरी मस्जिद स्वामित्व मुकदमे के फैसले के दौरान, मैंने यह आशंका व्यक्त की थी। पूजा स्थल अधिनियम को सुप्रीम कोर्ट के फैसले की मूल संरचना का हिस्सा बनाया गया था, फिर निचली अदालतें आदेश का पालन क्यों नहीं कर रही हैं?”

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About the Author: Ashish Sinha

-Ashish Kumar Sinha -Editor Legally Speaking -Ram Nath Goenka awardee - 14 Years of Experience in Media - Covering Courts Since 2008

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