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पूर्व कानूनमंत्री शांतिभूषण का निधन, नोएडा स्थित आवास पर ली आखिरी सांस

देश के पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण 97 साल की अवस्था में निधन हो गया। उन्होंने अपने नोएडा स्थित अपने आवास पर अंतिम सांस ली। पिछले कुछ दिनों से शांति भूषण काफी बीमार चल रहे थे। उनके बड़े बेटे और बरिष्ट वकील प्रशांत भूषण के मुताबिक शांति भूषण गुर्दे की बीमारी के साथ साथ उम्र संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं से भी पीड़ित थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनको श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए ट्वीट किया कि श्री शांति भूषण जी को कानूनी क्षेत्र में उनके योगदान और समाज के हाशिए पर आए वंचितों के लिए आवाज उठाने के जुनून के लिए हमेशा याद किया जाएगा। उनके निधन से दुख हुआ है और उनके परिवार के प्रति संवेदनाएं। शांति भूषण को निकट से जानने वालों के लिए उनके व्यक्तित्व में तीन अद्भुत गुणों का संगम था। एक वकील, एक राजनेता और एक सामाजिक कार्यकर्ता। वकील हुए तो देश की प्रधानमंत्री के चुनाव को शून्य करवा दिया। समाजवादी नेता राजनारायण के वकील होकर अपने अकाट्य तर्कों की बदौलत अदालत से इंदिरा गांधी का चुनाव अवैध घोषित करवा दिया था। परिणाम हुआ देश में आपातकाल लग गया। हालांकि शांति भूषण ने 1993 में मुंबई बम धमाकों के अभियुक्तों और बाद में संसद पर हमला करने वाले आतंकी शौकत हुसैन की पैरवी भी की थी। अरुंधति रॉय के खिलाफ जब कोर्ट की अवमानना का मुकदमा चला तो शांति भूषण रॉय की पैरवी करते दिखे। बिरला परिवार के संपत्ति विवाद में वो राजेंद्र एस लोढ़ा की पैरवी में अदालत की चौखट पर दिखे तो पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की भी उन्होंने पैरवी की। आपातकाल खत्म हुआ जनता पार्टी की सरकार आई। हालांकि जनता पार्टी बनी तो शांति भूषण कांग्रेस को छोड़कर जनता पार्टी में शामिल हो गए। इसके साथ आया शांतिभूषण का नया रूप। वो नया रूप राजनेता का देश के सामने आया देश के कानून मंत्री बने।  1977 से 1979, ढाई साल तक वो इस पद पर रहे। राज्यसभा के सदस्य के तौर पर वो केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्य रहे। वो भाजपा में भी रहे। सन् 1980 में वे भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए थे।  परन्तु 1986 में जब भारतीय जनता पार्टी ने एक चुनाव याचिका पर उनकी सलाह नहीं मानी तो उन्होंने भाजपा से त्यागपत्र दे दिया था। इसके बाद 1980 के दशक से शांति भूषण का एक और रूप दिखा सामाजिक कार्यकर्ता का। सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन यानी सीपीआईएल के संस्थापकों की कतार में सबसे आगे खड़े दिखे शांति भूषण। जस्टिस तारकुंडे, जस्टिस सच्चर आदि के साथ कदम और आवाज मिलाते हुए दिखे।उसके बाद आया अन्ना हजारे का लोकपाल आंदोलन जहाँ शांति भूषण वहां भी अपनी भूमिका अपने आप निभाने लगे। लोकपाल का पूरा मसौदा ड्राफ्ट किया। आंदोलन के बाद जब राजनीतिक दल बनाने की बात आई तो शांतिभूषण ने अरविंद केजरीवाल को सलाह, हौसला और एक करोड़ रुपए नकद भी दिए थे। देश के जाने माने विधि न्याय शास्त्र और संविधान विशेषज्ञ शांति भूषण अपनी शर्तों पर जिए थे। उत्तर प्रदेश के संगम नगरी इलाहाबाद में 11 नवंबर 1925 को जन्मे शांति भूषण को 2009 में इंडियन एक्सप्रेस की ओर से जारी भारत के सौ शक्तिशाली हस्तियों में 74 वें नंबर पर स्थान दिया था। लेकिन किसी भी विषय पर मुखरता से अपनी बात रखने में को हमेशा अव्वल नंबर पर ही रहे। Outlook for Android

देश के पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण 97 साल की अवस्था में निधन हो गया। उन्होंने अपने नोएडा स्थित अपने आवास पर अंतिम सांस ली।
पिछले कुछ दिनों से शांति भूषण काफी बीमार चल रहे थे। उनके बड़े बेटे और बरिष्ट वकील प्रशांत भूषण के मुताबिक शांति भूषण गुर्दे की बीमारी के साथ साथ उम्र संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं से भी पीड़ित थे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनको श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए ट्वीट किया कि श्री शांति भूषण जी को कानूनी क्षेत्र में उनके योगदान और समाज के हाशिए पर आए वंचितों के लिए आवाज उठाने के जुनून के लिए हमेशा याद किया जाएगा। उनके निधन से दुख हुआ है और उनके परिवार के प्रति संवेदनाएं।
शांति भूषण को निकट से जानने वालों के लिए उनके व्यक्तित्व में तीन अद्भुत गुणों का संगम था। एक वकील, एक राजनेता और एक सामाजिक कार्यकर्ता। वकील हुए तो देश की प्रधानमंत्री के चुनाव को शून्य करवा दिया। समाजवादी नेता राजनारायण के वकील होकर अपने अकाट्य तर्कों की बदौलत अदालत से इंदिरा गांधी का चुनाव अवैध घोषित करवा दिया था। परिणाम हुआ देश में आपातकाल लग गया।
हालांकि शांति भूषण ने 1993 में मुंबई बम धमाकों के अभियुक्तों और बाद में संसद पर हमला करने वाले आतंकी शौकत हुसैन की पैरवी भी की थी। अरुंधति रॉय के खिलाफ जब कोर्ट की अवमानना का मुकदमा चला तो शांति भूषण रॉय की पैरवी करते दिखे। बिरला परिवार के संपत्ति विवाद में वो राजेंद्र एस लोढ़ा की पैरवी में अदालत की चौखट पर दिखे तो पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की भी उन्होंने पैरवी की।
आपातकाल खत्म हुआ जनता पार्टी की सरकार आई। हालांकि जनता पार्टी बनी तो शांति भूषण कांग्रेस को छोड़कर जनता पार्टी में शामिल हो गए।
इसके साथ आया शांतिभूषण का नया रूप। वो नया रूप राजनेता का देश के सामने आया देश के कानून मंत्री बने।  1977 से 1979, ढाई साल तक वो इस पद पर रहे। राज्यसभा के सदस्य के तौर पर वो केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्य रहे।
वो भाजपा में भी रहे। सन् 1980 में वे भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए थे।  परन्तु 1986 में जब भारतीय जनता पार्टी ने एक चुनाव याचिका पर उनकी सलाह नहीं मानी तो उन्होंने भाजपा से त्यागपत्र दे दिया था।
इसके बाद 1980 के दशक से शांति भूषण का एक और रूप दिखा सामाजिक कार्यकर्ता का। सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन यानी सीपीआईएल के संस्थापकों की कतार में सबसे आगे खड़े दिखे शांति भूषण। जस्टिस तारकुंडे, जस्टिस सच्चर आदि के साथ कदम और आवाज मिलाते हुए दिखे।उसके बाद आया अन्ना हजारे का लोकपाल आंदोलन जहाँ शांति भूषण वहां भी अपनी भूमिका अपने आप निभाने लगे। लोकपाल का पूरा मसौदा ड्राफ्ट किया। आंदोलन के बाद जब राजनीतिक दल बनाने की बात आई तो शांतिभूषण ने अरविंद केजरीवाल को सलाह, हौसला और एक करोड़ रुपए नकद भी दिए थे।

देश के जाने माने विधि न्याय शास्त्र और संविधान विशेषज्ञ शांति भूषण अपनी शर्तों पर जिए थे। उत्तर प्रदेश के संगम नगरी इलाहाबाद में 11 नवंबर 1925 को जन्मे शांति भूषण को 2009 में इंडियन एक्सप्रेस की ओर से जारी भारत के सौ शक्तिशाली हस्तियों में 74 वें नंबर पर स्थान दिया था। लेकिन किसी भी विषय पर मुखरता से अपनी बात रखने में को हमेशा अव्वल नंबर पर ही रहे।

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About the Author: Ashish Sinha

-Ashish Kumar Sinha -Editor Legally Speaking -Ram Nath Goenka awardee - 14 Years of Experience in Media - Covering Courts Since 2008

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