इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में कहा की अगर किसी सरकारी सेवक ने पहली पत्नी के रहते दूसरी शादी कर ली है, तब भी उसे नौकरी से बर्खास्त नहीं किया जा सकता है। उपरोक्त टिप्पणी के साथ हाई कोर्ट ने एक सरकारी कर्मचारी की पहली शादी के अस्तित्व में रहने के दौरान दूसरी शादी करने के आरोप में उसकी बर्खास्तगी को रद्द कर दिया।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता के तर्क में योग्यता पाते हुए कहा कि सजा अन्यायपूर्ण है क्योंकि कथित दूसरी शादी पर्याप्त रूप से साबित नहीं हो सकी है।
जस्टिस क्षितिज शैलेन्द्र ने अपने फैसले में कहा कि कर्मचारी ने भले ही दूसरी शादी कर ली हो, उसे नौकरी से बर्खास्त नहीं किया जा सकता है क्योंकि यूपी सरकारी सेवक आचरण नियमावली के नियम 29 में सरकारी कर्मचारी की दूसरी शादी के मामले में केवल मामूली सजा का प्रावधान है।
उच्च न्यायालय ने कहा पहली शादी के अस्तित्व के दौरान दूसरी शादी करने का अनुमान लगाकर याचिकाकर्ता को दंडित करना तथ्य और कानून के अनुरूप नहीं है। यहां तक कि जब सरकारी कर्मचारी की ओर से उपरोक्त कृत्य स्थापित हो जाता है, तब भी उसे केवल मामूली सज़ा ही दी जा सकती है, बड़ी नही।
दरअसल, याचिकाकर्ता को 8 अप्रैल, 1999 को जिला विकास अधिकारी, बरेली के कार्यालय में बतौर प्रशिक्षु नियुक्त किया गया था। विवाद तब बड़ा हो गया जब आरोप लगाए गए कि उसने दूसरी शादी कर ली है। जबकि वह पहले से शादी-शुदा है। इसके बाद याचिकाकर्ता पर कदाचार का आरोप लगाते हुए उसके खिलाफ आरोप पत्र जारी किए गए और बाद में बर्खास्त कर दिया गया। हालाँकि,कर्मचारी ने अपनी दूसरी शादी से इनकार किया। याचिकाकर्ता ने अपनी
याचिका में दावा किया कि उसे सेवा से बर्खास्त करने से पहले कोई उचित जांच नहीं की गई। इतना ही नहीं उसकी विभागीय अपील खारिज कर दी गई। जिसके बाद कर्मचारी ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जहां उसकी बर्खास्तगी को रद्द कर दिया गया।