धर्मशालाओं और सरायों में सामाजिक सेवा के काम होते हैं। धार्मिक यात्रियों के लिए ठहरने का एक सस्ता आश्रय स्थल होता और धार्मिक-पारिवारिक अनुष्ठान होते हैं। इन्हें क्या कॉमर्शियल एक्टिविटी कहा जाएगा हरगिज नहीं! इसी तरह का एक मामला पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में चल रहा था, जहां कोर्ट ने अहम फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा कि धर्मशाला कोई कॉमर्शियल प्रॉपर्टी नहीं है। यह समाज की सेवा का एक हिस्सा है। कोर्ट ने कहा कि इसलिए धर्मशालाओं से नगर निगम या सरकार प्रॉपर्टी टैक्स नहीं वसूला जा सकता। वो प्रॉपर्टी टैक्स से छूट के हकदार हैं।
फरीदाबाद नगर निगम द्वारा भेजे गए नोटिस को खारिज करते हुए कोर्ट ने सरकार की उस अधिसूचना का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि सभी धार्मिक भवन और धार्मिक स्थल या धर्म से जुड़े को भी संस्थान टैक्स के दायरे से बाहर हैं। मामला, शादी समारोहों के लिए धर्मशाला को किराए पर देने का था, जिसके बाद नगर निगम ने नोटिस भेज प्रॉपर्टी टैक्स भरने को कहा था। इसके बाद धर्मशाला के प्रबंधक कोर्ट पहुंच गए, जहां उन्होंने एक याचिका दायर की थी।
नगर निगम ने अपना पक्षा रखते हुए कोर्ट में कहा कि धर्मशाला में कॉमर्शियल एक्टिविटीज की जा रही थी। याचिकाकर्ता ने न्यायालय में खुद कहा है कि वह धर्मशाला को शादी समारोहों के लिए किराए पर लगाते रहते हैं। इस पर कोर्ट ने कहा कि शादी एक सामुदायिक काम का हिस्सा है और याचिकाकर्ता समाज को अपनी सेवाएं दे रहा है। कोर्ट ने कहा कि शादी समारोहों के लिए आलीशान इमारते किराय पर लेते हैं, उनसे टैक्स लिया जा सकता है, लेकिन धर्मशाला से नहीं।