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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुकदमे से निकाल दिया SC-ST Act , आखिर क्या था अदालत का ऑबजर्वेशन, देखें यहां

Allahabad High Court

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत मुकदमे के लिए एक अभियुक्त को तलब करने के निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया, क्योंकि पीड़िता के साथ कथित दुर्व्यवहार सार्वजनिक तौर पर नहीं हुआ , बल्कि कार के भीतर हुआ।

न्यायमूर्ति राज बीर सिंह की पीठ ने हितेश वर्मा बनाम उत्तराखंड राज्य और अन्य 2020 AIR (SC) 5584 के मामले में उत्तराखंड उच्च न्यायालय के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया था कि यदि दुर्व्यवहार की कथित घटना कार के अंदर हुई। इसमें आम जनमानस के कानों में कोई शब्द नहीं गया। इसलिए अनुसूचित जाति-जनजाति अधिनियम की धारा 3(1)(डीए), (डीएच) के तहत कोई अपराध नहीं किया गया कहा जा सकता है।
इसी के साथ इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आरोपी के खिलाफ जारी गैर-जमानती वारंट को भी रद्द कर दिया, लेकिन आईपीसी की धारा 323, 504, 506 और 406 के तहत दर्ज अभियोग के लिए आरोपी-अपीलकर्ता के खिलाफ समन जारी करने को बरकरार रखा।

यह आदेश अनुसूचित जाति- जनजाति अधिनियम की धारा 14-ए (1) के तहत सैयद मोहिउद्दीन अहमद द्वारा विशेष न्यायाधीश, अनुसूचित जाति-जनजाति अधिनियम, इलाहाबाद के सम्मन आदेश के खिलाफ दायर एक आपराधिक अपील की सुनवाई के दौरान पारित किया गया था। मामले में दायर चार्जशीट को भी चुनौती दी गई थी। अभियुक्त के खिलाफ आरोप यह था कि अपीलकर्ता के कहने पर बिक्री विलेख निष्पादित किया और प्रतिफल राशि के बदले में, उसे दो चेक दिए गए, जो बैंक में प्रस्तुत करने पर डिसऑनर हो गए।
इसीलिए 15 जुलाई, 2019 को, याती ने एग्रीमेंट की राशि प्रदान करने की आड़ में प्रतिपक्षी को बुलाया और अपीलकर्ता और उसके सहयोगियों ने उसे जबरन एक कार में खींच लिया, मारपीट की और जातिसूचक भाषा का उपयोग करते हुए उसके साथ दुर्व्यवहार किया, और फिर उसे कार से बाहर फेंक दिया।

अपीलकर्ता ने अदालत के समक्ष तर्क दिया कि प्रतिवादी नंबर 3 ने सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत एक आवेदन दायर करके झूठे और निराधार आरोप लगाते हुए मामले में प्राथमिकी दर्ज की, जबकि विवाद दीवानी प्रकृति का था।
याची की अधिवक्ता ग़ज़ाला बानो कादरी और मसीह उद्दीन ने यह भी तर्क दिया कि दिनांक 24.03.2021 के आक्षेपित आदेश पर संज्ञान लिया गया और अपीलकर्ता को तलब किया गया, और उसी आदेश द्वारा अपीलकर्ता के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया गया। जो कि कानून की अच्छी तरह से स्थापित स्थिति के विपरीत।
याची के अधिवक्ता ने कहा कि प्रतिपक्षी के बयान के अनुसार, दुर्व्यवहार की कथित घटना कार के अंदर हुई थी, और इस प्रकार यह नहीं कहा जा सकता है कि प्रतिवादी को सार्वजनिक दृष्टि से उसकी जाति के आधार पर दुर्व्यवहार या अपमानित किया गया था।

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About the Author: Ashish Sinha

-Ashish Kumar Sinha -Editor Legally Speaking -Ram Nath Goenka awardee - 14 Years of Experience in Media - Covering Courts Since 2008

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