प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को एक वायरस बताने वाले आरोपी को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति अंजनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति नंद प्रभा शुक्ला की खण्ड पीठ ने गिरफ्तारी से राहत दे दी है।
याचिका की ओर से पेश वकील ने कोर्ट के समक्ष कहा कि कि प्राथमिकी में आरोपों से धारा 504 आईपीसी के तहत कोई अपराध नहीं है। यह अपराध सूचना प्रौद्योगिकी (संशोधन) अधिनियम, 2008 की धारा 66 के अन्तर्गत भी नहीं है। इसलिए उसके मुवक्किल को जमानत दी जानी चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि शब्दों को किसी भी मामले में अपमानजनक या अशोभनीय या ऐसा नहीं कहा जा सकता है, जो आईपीसी की धारा 504 के दायरे में आता हो।
राज्य की ओर से पेश वकील ने कहा कि रिट याचिका में याचिकाकर्ता पत्रकार होने का दावा करता है। उन्होंने प्राथमिकी में लगाए गए आरोपों का खंडन नहीं किया है कि वह एक राजनीतिक दल के प्रवक्ता हैं और राजनीतिक बयान दे रहे थे, जिसे वायरल कर दिया गया है। इसलिए एक संज्ञेय अपराध है और याचिका को खारिज किया जाना चाहिए।
न्यायालय ने दोनों पक्षों की दलीलों पर विचार किया और पाया कि प्रथम दृष्टया, याचिकाकर्ता के लिए विशेषता शब्द आईपीसी की धारा 504 के दायरे में नहीं आते हैं। और, इसलिए, इस मामले पर विचार करने की आवश्यकता है।
कोर्ट ने आदेश दिया कि सूचीबद्ध होने की अगली तारीख तक, याचिकाकर्ता को दर्ज प्राथमिकी के परिणामस्वरूप गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है। यह सुरक्षा या तो अगली लिस्टिंग तक या धारा 173 (2) सीआरपीसी के तहत पुलिस रिपोर्ट जमा करने तक, जो भी पहले हो, तक उपलब्ध होगी।