गौहाटी हाईकोर्ट ने असम पुलिस को कड़ी फटकार लगाई है और कहा है कि अपनी पुलिस अपनी गलतियों को छुपाने के लिए एफआईआर दर्ज नहीं कर सकती। हाईकोर्ट ने बिलासीपुरा पुलिस की “जांच के बाद प्राथमिकी” दर्ज करने की आलोचना की और कहा कि पहले गिरफ्तारी फिर उसे सही साबित करने के लिए गिरफ्तार शख्स के खिलाफ आपराधिक मामले में एफआईआर दर्ज करना अनुचित और मनमाना तरीका है।
हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस देवाशीष बरुआ की बेंच ने कहा कि ऐसी प्रक्रिया पूरी तरह से आपराधिक न्यायशास्त्र के सिद्धांतों के खिलाफ है।
16 जून को पारित आदेश में हाई कोर्ट ने कहा, “हम यहां रिकॉर्ड में उपलब्ध दस्तावेजों में साफ-साफ देख रहे हैं कि बिलासीपुरा थाने के सब-इंस्पेक्टर मानस ज्योति सैकिया और प्रभारी अधिकारी ज्योतिर्मय गायन ने 31.05.2023 को जांच के बाद प्राथमिकी दर्ज की है, इस तथ्य के बावजूद कि बसर अली की हत्या के मामले में दो प्राथमिकी पहले ही दर्ज की जा चुकी थी। इससे स्पष्ट प्रतीत होता है कि यह प्राथमिकी इसलिए दर्ज की गई ताकि किसी तरह रोकिया खातून की गिरफ्तारी को सही ठहराया जा सके। इस तरह की प्रक्रिया पूरी तरह से आपराधिक न्यायशास्त्र के सिद्धांतों से अलग है।”
दरअसल, हाईकोर्ट एक ऐसे मामले की सुनवाई कर रहा था जिसने धुबरी जिले के बिलासीपुरा पुलिस स्टेशन में एक महिला को एक शिशु के साथ हिरासत में लिए जाने की ओर ध्यान खींचा था।
रिपोर्ट के अनुसार स्तनपान कराने वाली एक महिला को एक हत्या के मामले में शामिल होने के आरोप में छह दिनों तक पुलिस हिरासत में रखा गया था, जबकि उसकी गिरफ्तारी से पहले कोई प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई थी। महिला के भाई ने पुलिस कार्रवाई और प्रताड़ना से राहत पाने के लिए गौहाटी हाई कोर्ट दरवाजा खटखटाया था। मामले की सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस ने असम पुलिस की कड़ी आलोचना की और अधिकारियों को फटकार लगाई।