हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा है कि नाबालिग बच्चों की प्राकृतिक अभिभावक पिता के बाद मां ही हो सकती है। हिमाचल उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर ने पिछले साल 23 नवंबर को नालागढ़ के उप-मंडल मजिस्ट्रेट द्वारा पारित एक आदेश के खिलाफ दायर एक याचिका पर यह आदेश पारित किया। जिसमें उन्होंने दादा-दादी को निर्देशित किया कि नाबालिग बच्चों की कस्टडी मां को सौंपी जाए।
यह प्रकरण सोलन जिले की प्रीति देवी का है। प्रीति की शादी सोलन जिले की रामशहर तहसील के बहलम गांव के अमर सिंह से हुई थी। वैवाहिक विवाद के कारण प्रीति देवी और उसका पति अलग-अलग रह रहे थे। 17 जुलाई, 2022 को अमर सिंह ने आत्महत्या कर ली।
अमर सिंह के पिता दर्शन सिंह ने प्रीति देवी के खिलाफ पुलिस में मामला दर्ज कराया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उनके बेटे ने अपनी पत्नी की क्रूरता के कारण आत्महत्या की है। नतीजतन, 18 जुलाई को प्रीति को गिरफ्तार कर लिया गया मगर 27 जुलाई को जमानत पर रिहा कर दिया गया। इस दौरान प्रीति के बच्चे दादा-दादी के पास रहे।
जमानत पर रिहा होने के बाद प्रीति देवी ने अपने बच्चों की कस्टडी के लिए एसडीएम नालागढ़ की अदालत में अर्जी दाखिल की। एसडीएम नालागढ़ ने अपने 23 नवंबर 2022 के आदेश में दादा-दादी को नाबालिग बच्चों की कस्टडी मां को सौंपने का निर्देश दिया था। एसडीएम नालागढ़ के आदेश के खिलाफ दादा-दादी ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
याचिकाकर्ता और प्रतिवादी के वकीलों को सुनने के बाद, अदालत ने कहा कि यह आरोप कि मां ने पति को आत्महत्या के लिए उकसाया, अभी तक साबित नहीं हुआ है।
इसके अलावा, उसे अपने नाबालिग बच्चों की कस्टडी के लिए अक्षम या अपात्र घोषित नहीं किया गया है। इसलिए, पिता की मृत्यु के बाद, मां ही नाबालिग बच्चों की संरक्षकता या हिरासत रखने वाली अगली व्यक्ति होती है।
हालाँकि, न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि बच्चों की अभिरक्षा के लिए माँ का अधिकार पूर्ण नहीं है, लेकिन बच्चों के कल्याण के अधीन है और यदि उचित कार्यवाही के मामले में वह अक्षम पाई जाती है या बच्चों की अभिरक्षा या बच्चों के कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए अयोग्य पाई जाती है तो वह बच्चों को अपने पास रखने का अधिकार खो देगी।
सुनवाई के दौरान अदालत ने पाया कि मजिस्ट्रेट की अदालत में कार्यवाही का रिकॉर्ड भी उचित तरीके से नहीं रखा गया था। “मजिस्ट्रेट द्वारा किस तारीख को किस आदेश को पारित किया गया था, यह इंगित करने वाला कोई अलग आदेश पत्रक भी नहीं था।
न्यायालय ने राज्य सरकार के मुख्य सचिव को व्यक्तिगत रूप से मामले को देखने और न्यायिक कार्यवाही करने वाले अधिकारियों द्वारा न्यायिक कार्यवाही के रिकॉर्ड का उचित रखरखाव सुनिश्चित करने का निर्देश दिया।