बॉम्बे हाई कोर्ट ने बुधवार को महाराष्ट्र सरकार को 17 वर्षीय गर्भवती लड़की को चिकित्सा सहायता प्रदान करने का निर्देश दिया है। शहर के अस्पतालों ने लड़की का इलाज करने से इसलिए इनकार कर दिया था क्योंकि लड़की ने उस शख्स के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं कराई थी जिसने उसे गर्भवती किया था। ऐसा बताया जा रहा है कि लड़का भी नाबालिग है और कॉलेज में पढ़ रहा है।
जस्टिस जीएस कुलकर्णी और एफपी पूनीवाला की पीठ 17 साल की उम्र पूरी कर चुकी नाबालिग लड़की की मां द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। वकील निगेल कुरैशी के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि अस्पतालों ने उसका इलाज करने से इनकार कर दिया क्योंकि वह कॉलेज छात्र के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज नहीं कराना चाहती थी क्योंकि उसके साथ उसके संबंध सहमति से बने थे। याचिका में कहा गया है कि चिकित्सा उपचार से इंकार करना भारत के संविधान में निहित लड़की के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
सरकारी वकील पूर्णिमा कंथारिया ने पीठ के समक्ष कहा कि मुंबई के पश्चिमी उपनगर में रहने वाली लड़की सरकारी जेजे अस्पताल में इलाज करा सकती है। कंथारिया ने कहा, हालांकि, लड़की को एक आपातकालीन पुलिस रिपोर्ट जमा करनी होगी जिसमें कहा गया हो कि वह लड़के के खिलाफ आपराधिक शिकायत दर्ज नहीं कराना चाहती है।
क़ुरैशी ने अदालत को सूचित किया कि लड़की बच्चे का गर्भपात नहीं कराना चाहती है और एक बार बच्चे के जन्म के बाद उसे गोद ले लिया जाएगा। याचिका में दावा किया गया कि उपनगरीय अंधेरी में एक आश्रय गृह उसे सहायता और देखभाल के लिए प्रसव से पहले और बाद में भर्ती करने के लिए सहमत हो गया था।
पीठ ने कहा, “पुलिस को बयान सौंपने में कोई नुकसान नहीं है” और निर्देश दिया कि लड़की शुक्रवार तक अपने वकील के माध्यम से आपातकालीन पुलिस रिपोर्ट के रूप में अपना बयान जमा करे। पीठ ने अपने आदेश में कहा, “लड़की जेजे अस्पताल में चिकित्सा उपचार लेने की हकदार होगी। अस्पताल के डीन मामले और प्रदान किए गए उपचार की गोपनीयता बनाए रखने के लिए पूरा ध्यान रखेंगे।”
पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा चिन्हित आश्रय गृह लड़की को देखभाल और सहायता के लिए भर्ती करने की अनुमति देगा।
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