उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने सरकारी नौकरियों में मूल निवासी महिलाओं के लिए 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिका पर राज्य सरकार से जवाब मांगा है।
मुख्य न्यायाधीश रितु बाहरी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की पीठ सत्य देव त्यागी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
याचिका में उत्तराखंड लोक सेवा आयोग (महिलाओं के लिए क्षैतिज आरक्षण) अधिनियम, 2022 की धारा 3(1) को चुनौती देते हुए तर्क दिया गया है कि राज्य की महिलाओं के लिए 30 प्रतिशत आरक्षण भारत के संविधान के अनुच्छेद 16 के दायरे से अधिक है।
हाई कोर्ट ने अगली सुनवाई 7 मई 2024 तय की है।
मामले के अनुसार, उत्तराखंड लोक सेवा आयोग ने 14 मार्च, 2024 को विभिन्न पीसीएस (प्रांतीय सिविल सेवा) पदों के लिए एक विज्ञापन जारी किया, जिसमें डिप्टी कलेक्टर, पुलिस उपाधीक्षक और जिला कमांडेंट होम गार्ड जैसे 189 पद शामिल थे। विज्ञापन के खंड 10 (डी) में उत्तराखंड की मूल निवासी महिला उम्मीदवारों के लिए 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण निर्धारित है।
याचिकाकर्ता के वकील कार्तिकेय हरि गुप्ता ने आरक्षण का विरोध करते हुए कहा कि केवल निवास स्थान पर आधारित क्षैतिज आरक्षण लागू नहीं किया जाना चाहिए।
याचिका में तर्क दिया गया है कि उत्तराखंड राज्य विधानमंडल द्वारा पारित उपरोक्त अधिनियम, भारत के संविधान की धारा 3(1) का उल्लंघन करता है, जो इसे असंवैधानिक बनाता है।