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वृंदावन के जग प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर के खजाने की हिफाजत के लिए सेवायतों ने सुप्रीम कोर्ट में लगाई गुहार

Baanke Bihari ji Mandir

वृंदावन के जग प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर के खजाने यानी धनकोष की रक्षा के लिए सेवायतों ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई है। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस की पीठ के समक्ष वकील स्वरूपमा चतुर्वेदी ने इस मामले की मेंशिनिंग कर याचिका पर जल्द सुनवाई की गुहार लगाई। कोर्ट इस पर अगले सोमवार को सुनवाई करने पर सहमत हो गया है।

सोमवार को हुई मेंशनिंग में बांके बिहारी मंदिर के सेवायतों ने इलाहबाद हाईकोर्ट के उस सुझाव पर गहरी आपत्ति जताई है जिसमें कहा गया कि मंदिर के धन कोश का इस्तेमाल क्षेत्र के विकास के लिए किया जाए।

याचिकाकर्ताओं ने खुद को पीढ़ी दर पीढ़ी अपने आराध्य ठाकुर जी के सेवायत और संरक्षक बताया है, क्योंकि यहां ठाकुर बांके बिहारी की सेवा पांच साल के बालक के रूप में है। लिहाजा ये सेवायत ही उनके संरक्षक भी हैं। याचिकाकर्ता व्यक्तिगत रूप से पांच दशकों से भी ज्यादा समय से ठाकुर जी की सेवा और संरक्षक के रूप में हैं। 

इन सेवायतों ने उच्च न्यायालय के 20 दिसंबर, 2022 के आदेश में वर्णित सुझाव को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। उस आदेश में हाईकोर्ट ने श्री बांके बिहारी मंदिर के खातों में जमा धनराशि के उपयोग हेतु   विस्तृत विकास योजना तैयार करने का सुझाव दिया था।

इस आदेश के पहले यानी 18 अक्टूबर, 2022 तक तो इसी उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार, मंदिर के आसपास सुविधाओं को विकसित करने के लिए भूमि की खरीद का खर्च उत्तर प्रदेश सरकार को ही वहन करना था। ये दोनों आदेश मंदिर के अंदर और बाहर बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए दायर एक जनहित याचिका यानी पीआईएल के संदर्भ में ही दिए गए थे। लेकिन दोनों में बिलकुल विरोधाभासी अंतर था।

पिछले साल यानी पिछले महीने दिसंबर में जारी आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए अपनी याचिका में सेवायतों ने कहा है कि हाईकोर्ट ने उस जनहित याचिका पर ना तो उन्हें पक्षकार बनाने की अनुमति दी और न ही उनको सुना गया। हितधारक होने की वजह से उनको सुनना लाजिमी था। लेकिन कोर्ट ने उनको अपना पक्ष रखने जा अवसर दिए बिना ही आदेश जारी कर दिया। 

याचिकाकर्ता सेवायतों को आशंका है कि अदालती कार्यवाही के जरिए राज्य सरकार विकास और रखरखाव के नाम पर इस निजी मंदिर के प्रबंधन मामलों को हथियाना चाहती है। याचिका में तर्क दिया गया है कि यदि मंदिर के धन का उपयोग करने के लिए हाईकोर्ट की पेशकश पर अमल  किया जाता है तो सरकार मंदिर प्रशासन में अपनी शक्तियों का प्रयोग करेगा। सरकार की ये कार्रवाई सेवायतों के अपनी उपासना आराधना पद्धति के पालन और अपनी आस्था व परंपरा के मुताबिक अपने उपास्य देव की सेवा पूजा के बुनियादी अधिकार का पूरी तरह हनन होगा।

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About the Author: Ashish Sinha

-Ashish Kumar Sinha -Editor Legally Speaking -Ram Nath Goenka awardee - 14 Years of Experience in Media - Covering Courts Since 2008

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