सेम सेक्स मैरिज के वैधानिक अधिकार और उनसे होने वाली समस्याओं को लेकर उठने वाले मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के सामने बहस जारी है। यह बहस नौ मई को भी जारी रहेगी। इससे पहले चीफ जस्टिस ने कहा कि याचिकाकर्ता चाहें तो रेलिवेंट दस्तावेज कोर्ट को मुहैया करवा सकते हैं ताकि कोर्ट इस मुद्दे पर गहराई से विचार कर सके।
सातवें दिन बहस की शुरुआत करते हुए केंद्र सरकार की ओर से सोलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि सरकार कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक समिति का गठन करने के लिए तैयार है जो समलैंगिक जोड़ों की कुछ चिंताओं को दूर करने के लिए उनकी शादी को वैध बनाने के मुद्दे पर विचार किए बिना कदम उठाएगी।
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ को बताया कि सरकार इस संबंध में प्रशासनिक कदमों का पता लगाने के सुझाव के बारे में सकारात्मक है। मेहता ने कहा, “इस मुद्दे में कुछ वास्तविक मानवीय चिंताएँ हैं और इस पर चर्चा हुई कि क्या प्रशासनिक रूप से कुछ किया जा सकता है। सरकार सकारात्मक है। इसके लिए विभिन्न मंत्रालयों द्वारा समन्वय की आवश्यकता होगी। एक कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक समिति बनाई जाएगी और सुझाव दिए जाएंगे।” याचिकाकर्ताओं को संबोधित किया जाएगा।”
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में CJI डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस रवींद्र भट, जस्टिस हेमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल हैं।
सालिसीटर जनरल मेहता ने पीठ से कहा कि इसके लिए कई मंत्रालयों के बीच समन्वय की जरूरत होगी और इसके लिए कुछ समय की जरूरत होगी। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता इस संबंध में क्या प्रशासनिक कदम उठाए जा सकते हैं, यह पता लगाने के मुद्दे पर अपने सुझाव दे सकते हैं। इस पर CJI चंद्रचूड़ ने कहा, “याचिकाकर्ता आज और अगली सुनवाई के बीच सुझाव दे सकते हैं ताकि वे इस पर भी अपना दिमाग लगा सकें। याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने पीठ से कहा कि यह मुद्दा कहीं अधिक जटिल है और इसके लिए कानून की व्याख्या की आवश्यकता है।
न्यायमूर्ति एसके कौल ने यह भी कहा, “यह सभी के अधिकारों के प्रति पूर्वाग्रह के बिना है, भले ही विवाह के अधिकार दिए जाएं लेकिन विधायी और प्रशासनिक क्षेत्र में कई बदलावों की आवश्यकता होगी। सरकार समलैंगिक साहचर्य से उत्पन्न होने वाली समस्याओं को हल करने में अनिच्छुक नहीं है। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी ने हस्तक्षेप किया और कहा, “मैं यहां ज्यादातर छोटे शहरों के युवा लोगों के लिए बोलती हूं जो शादी करना चाहते हैं।
संविधान पीठ के समक्ष आज मध्यप्रदेश सरकार की ओर से एडवोकेट राजेश द्विवेदी ने अपने तर्क रखे और कहा कि अदालत को इस मामले में फैसला नहीं करना चाहिए। बदलते समाज में इस तरह की शादियों को मंजूरी देने के लिए विधायिका द्वारा बहस की जरूरत है। अंत में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि अब इस मामले की सुनवाई 9 मई को शुरू होगी। तब तक याचिकाकर्ताओं के पास कोई और तर्क या तथ्य हो तो वो पीठ को उप्लब्ध करा सकते हैं।