उड़ीसा हाई ने कहा है कि जब तक किसी व्यक्ति का मकसद एससी या एसटी व्यक्ति का अपमान करना नहीं होगा तब तक उस व्यक्ति को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम कि धारा 3(1)(X) के तहत अपराधी नहीं माना जायेगा।
दरअसल , इस मामले में याचिकाकर्ता ने मुखबिर के साथ मारपीट की थी , और याचिकाकर्ता ने उसकी जाती का नाम लेकर उसे गाली दी। मारपीट के दौरान शिकायतकर्ता बेहोश हो गए थे। इसके बाद शिकायतकर्ता ने याचिकाकर्ता पर FIR दर्ज कराई जिसमें उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 294,323 और 506 के आलावा SC और SC एक्ट की धारा 3(1) (X) के तहत मामला दर्ज कराया गया था।
इस बात में सवाल यह था की क्या याचिकाकर्ता द्वारा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (पीओए) अधिनियम की धारा 3(1)(x) के तहत अपराध किया गया है?
इस मामले में न्यायमूर्ति आर.के. पटनायक की बेंच सत्र न्यायाधीश द्वारा पारित किए गए विवादित आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहे थे , खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता ने गुस्से की परिस्थितियों में अचानक मुखबिर को गाली दी। निस्संदेह याचिकाकर्ता ने मुखबिर को गाली देते हुए उसकी जाति का नाम लिया। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (पीओए) अधिनियम की धारा 3(1)(x) के तहत जाति का नाम लेना या किसी की जाति का नाम लेकर गाली देना अपराध नहीं होगा, जब तक कि उसका इरादा अनुसूचित जाति के व्यक्ति का अपमान करने, या डराने का न हो।
हाईकोर्ट ने कहा कि यदि पीड़ित को अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति होने के कारण सार्वजनिक रूप से अपमानित किया जाता है और उस इरादे से कोई भी प्रत्यक्ष कार्य या शरारत की जाती है, तो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (पीओए) अधिनियम की धारा 3(1)(x) के तहत यह एक अपराध है। लेकिन जैसा कि याचिकाकर्ता के आचरण से प्रतीत होता है, कि उसका अपमान करने, डराने और अपमानित करने का कोई इरादा नहीं था। यह शुद्ध और सरल था, याचिकाकर्ता द्वारा अजीबोगरीब तथ्यों और परिस्थितियों के तहत और अचानक प्रकोप और पल भर में मुखबिर को अपमानित करने के लिए अपेक्षित इरादे के बिना दुर्व्यवहार किया गया था।